

ताजमहल : एक नज़र ऐसे भी
“दुनिया के लोगों को दो
वर्गों में रखा जा सकता है एक वो जिन्होंने ताजमहल का दर्शन किया और दूसरे वो जो
इससे वंचित रह गए” | सन 1874 में ब्रिटिश यात्री एडवर्ड लेयर द्वारा कहे गए ये
शब्द ताजमहल की विशेषता, खूबसूरती, और लोकप्रियता की ओर इशारा करते हैं | यूं तो संसार में बहुत सारी इमारतें ऐसी
हैं जो खूबसूरत होने के साथ साथ हैरतअंगेज़ भी हैं मगर मुग़ल बादशाह शाहजहाँ द्वारा अपनी
पत्नी मुमताज़ की याद में तामीर कराया गया ताजमहल संसार की सभी प्रसिद्ध इमारतों
में एक अलग मुक़ाम रखता है | दुनिया में बहुत कम ऐसी मिसालें मिलती हैं जिनमें किसी
व्यक्ति ने अपनी मुहब्बत को दुनिया के सामने पेश करने लिए ऐसा अदभुत तरीक़ा अपनाया हो
| यही वजह है विभिन्न क्षेत्रों के फनकारों ने, चाहे वह चित्रकार हो या मूर्तिकार,
संगीतकार हो या शायर सभी ने इस भव्य इमारत को अपने-अपने अंदाज़ में अभिव्यक्त किया
है |
किसी ने इसे मुहब्बत की
अज़ीम निशानी क़रार दिया तो किसी ने इसे ग़रीबों की मुहब्बत का मज़ाक़ तक कह डाला
अर्थात जिस किसी ने भी जिस नज़र से देखा उसी अंदाज़ में पेश कर दिया | ‘साहिर’ लुधियानवी ने कहा, “इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल, हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है
मज़ाक़” जबकि ‘शकील’ बदायूनी ने इसे इस अंदाज़ में कहा “ इक शहंशाह ने बनवा के हसीं
ताजमहल’ सारी दुनिया को मुहब्बत की निशानी दी है |
अपने निर्माण के लगभग 366
वर्ष बाद भी यह खूबसूरत इमारत न केवल देशी-विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित
करती है बल्कि बड़े-बड़े लेखकों एवं साहित्यकारों को भी आज अपनी क़लम उठाने पर मजबूर
करती है | ताजमहल के निर्माण हेतु प्रयोग में लाये गए संगमरमर पर, उसकी नक्काशी और
बनावट, मीनारें और गुंबद आदि के हवाले से बहुत कुछ लिखा गया है मगर ईरानी, तुर्की
और हिन्दुस्तानी संस्कृति के मिश्रण की इस निशानी पर इस्लामी संस्कृति तथा इस इमारत
पर विशेष शैली में हुए क़ुरान की आयातों के सुलेखन के हवाले से कम ही लेखकों ने ज़ोर
आज़माई की है |
ताजमहल के द्वार पर
अलंकृत सुलेख का अर्थ है- “हे आत्मा! तू इश्वर के पास विश्राम कर | इश्वर के पास
शान्ति के साथ रह और ईश्वर की परम शान्ति तुझ पर बरसे |
सम्पूर्ण ताजमहल के अलंकरण
में इस्लाम के मानवतारोपी आकृति के प्रतिबन्ध का पूरी तरह से पालन किया गया है |
अलंकरण में केवल सुलेखन तथा निराकार रूपांकन का ही प्रयोग किया गया है | इस सुलेखन
में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि ऊंचाई पर लिखी आयतें छोटी न प्रतीत हों
इसलिए नीचे से ऊपर की तरफ अलंकरण के क्षेत्र में वृद्धि होती रहती है अर्थात ऊंचाई
पर उसी अनुपात में बड़ा लेखन किया गया है जिससे कि नीचे से देखने पर टेढ़ापन न लगे |
यह सुलेखन जैस्पर को श्वेत संगमरमर के फलकों में जड़कर किया गया है | तहखाने में बनी
मुमताज़ की क़ब्र पर इश्वर के निन्यानवे नाम लिखे हुए हैं जिनमें से कुछ “ओ नीतिवान”, “ओ तेजस्वी”.
“ओ अनंत” आदि हैं |
इन्हीं कुछ विशेषताओं के
कारण ताजमहल को भारतीय इस्लामी कला का रत्न घोषित किया गया है अब ये आधुनिक विश्व
के सात अजूबों में पहले स्थान पर है | ताजमहल को यह स्थान विश्वव्यापी मतदान से
हासिल हुआ था जहाँ इसे दस करोड़ मत मिले थे | प्रत्येक वर्ष ताजमहल के दीदार के लिए
तक़रीबन 30 लाख दर्शक आते हैं जो कि भारत के किसी भी पर्यटन स्थल पर आने वाले
दर्शकों की संख्या से अधिक है |
एक तरफ जहाँ यह इमारत
समूचे विश्व में अपने आकर्षण की वजह से प्रसिद्ध है वहीं इससे संबंधित अनेक प्रचलित
कथाएं भी लोगों की ज़ुबानी सुनने को मिलती हैं | इसी सन्दर्भ में कुछ लोगों का कहना
है कि इस भव्य निर्माण से जुड़े लोगों से यह इकरारनामा लिखवा लिया गया था कि वह इस
रूप की कोई दूसरी इमारत बनाने में किसी तरह का कोई सहयोग नहीं करेंगे | हालाँकि उपलब्ध
साक्ष्यों के आधार पर कहीं से भी इस तथ्य की पुष्टि नहीं होती है |
खैर ये तो सच है कि
ताजमहल की खूबसूरती को चंद अलफ़ाज़ या लाइनों में बयान नहीं किया जा सकता पर इतना
ज़रूर है कि ताजमहल के बारे में इतना कुछ जानकर आप में से कोई शख्स ताजमहल को देखने
की ख्वाहिश अपने दिल में दबाकर नहीं रख सकता | देखिये जनाब बातों ही बातों में
ताजमल की एक और विशेषता पता चल गयी कि ताजमहल न केवल अपने देखने वालों को अपनी तरफ
आकर्षित करता है बल्कि अपने बारे में पढने वालों के अन्दर भी यह जिज्ञासा और
बेचैनी अवश्य पैदा कर देता है कि वो इसके दर्शन के लिए अवश्य जाएँ |
मोहम्मद तारिक़ुज़्ज़मा
जामिया मिल्लिया इस्लामिया नई दिल्ली