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Sunday, 17 August 2014

ताजमहल : एक नज़र ऐसे भी

 

ताजमहल : एक नज़र ऐसे भी


“दुनिया के लोगों को दो वर्गों में रखा जा सकता है एक वो जिन्होंने ताजमहल का दर्शन किया और दूसरे वो जो इससे वंचित रह गए” | सन 1874 में ब्रिटिश यात्री एडवर्ड लेयर द्वारा कहे गए ये शब्द ताजमहल की विशेषता, खूबसूरती, और लोकप्रियता की ओर इशारा करते  हैं | यूं तो संसार में बहुत सारी इमारतें ऐसी हैं जो खूबसूरत होने के साथ साथ हैरतअंगेज़ भी हैं मगर मुग़ल बादशाह शाहजहाँ द्वारा अपनी पत्नी मुमताज़ की याद में तामीर कराया गया ताजमहल संसार की सभी प्रसिद्ध इमारतों में एक अलग मुक़ाम रखता है | दुनिया में बहुत कम ऐसी मिसालें मिलती हैं जिनमें किसी व्यक्ति ने अपनी मुहब्बत को दुनिया के सामने पेश करने लिए ऐसा अदभुत तरीक़ा अपनाया हो | यही वजह है विभिन्न क्षेत्रों के फनकारों ने, चाहे वह चित्रकार हो या मूर्तिकार, संगीतकार हो या शायर सभी ने इस भव्य इमारत को अपने-अपने अंदाज़ में अभिव्यक्त किया है |
किसी ने इसे मुहब्बत की अज़ीम निशानी क़रार दिया तो किसी ने इसे ग़रीबों की मुहब्बत का मज़ाक़ तक कह डाला अर्थात जिस किसी ने भी जिस नज़र से देखा उसी अंदाज़ में पेश कर दिया | ‘साहिर’ लुधियानवी ने कहा, “इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल, हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़” जबकि ‘शकील’ बदायूनी ने इसे इस अंदाज़ में कहा “ इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल’ सारी दुनिया को मुहब्बत की निशानी दी है |
अपने निर्माण के लगभग 366 वर्ष बाद भी यह खूबसूरत इमारत न केवल देशी-विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है बल्कि बड़े-बड़े लेखकों एवं साहित्यकारों को भी आज अपनी क़लम उठाने पर मजबूर करती है | ताजमहल के निर्माण हेतु प्रयोग में लाये गए संगमरमर पर, उसकी नक्काशी और बनावट, मीनारें और गुंबद आदि के हवाले से बहुत कुछ लिखा गया है मगर ईरानी, तुर्की और हिन्दुस्तानी संस्कृति के मिश्रण की इस निशानी पर इस्लामी संस्कृति तथा इस इमारत पर विशेष शैली में हुए क़ुरान की आयातों के सुलेखन के हवाले से कम ही लेखकों ने ज़ोर आज़माई की है |

ताजमहल के विभिन्न भागों पर अलंकृत ये आयतें न केवल ख़ास लेखन शैली का नमूना हैं बल्कि एक विशेष अर्थ तथा सन्देश भी अपने अन्दर समोए हुए हैं | पूरे ताजमहल पर क़ुरान की लगभग 15 सूरतों की विभिन्न आयतें लिखी गयी हैं जिनमें से क़ुरान का ह्रदय कही जाने वाली सूर-ए–यासीन भी शामिल है जो कि मुख्य द्वार पर अलंकृत है | अब तक उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर इस बात की  पुष्टि हो चुकी है कि क़ुरान की इन आयतों का चयन अमानत खान नामक व्यक्ति ने किया था जिसके लिए बाद में एक समिति का गठन किया गया और इसके सभी सदस्यों के हस्ताक्षर के बाद इन आयतों के चुनाव को अंतिम रूप दिया गया |

ताजमहल के द्वार पर अलंकृत सुलेख का अर्थ है- “हे आत्मा! तू इश्वर के पास विश्राम कर | इश्वर के पास शान्ति के साथ रह और ईश्वर की परम शान्ति तुझ पर बरसे |
सम्पूर्ण ताजमहल के अलंकरण में इस्लाम के मानवतारोपी आकृति के प्रतिबन्ध का पूरी तरह से पालन किया गया है | अलंकरण में केवल सुलेखन तथा निराकार रूपांकन का ही प्रयोग किया गया है | इस सुलेखन में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि ऊंचाई पर लिखी आयतें छोटी न प्रतीत हों इसलिए नीचे से ऊपर की तरफ अलंकरण के क्षेत्र में वृद्धि होती रहती है अर्थात ऊंचाई पर उसी अनुपात में बड़ा लेखन किया गया है जिससे कि नीचे से देखने पर टेढ़ापन न लगे | यह सुलेखन जैस्पर को श्वेत संगमरमर के फलकों में जड़कर किया गया है | तहखाने में बनी मुमताज़ की क़ब्र पर इश्वर के निन्यानवे नाम लिखे  हुए हैं जिनमें से कुछ “ओ नीतिवान”, “ओ तेजस्वी”. “ओ अनंत” आदि हैं |
इन्हीं कुछ विशेषताओं के कारण ताजमहल को भारतीय इस्लामी कला का रत्न घोषित किया गया है अब ये आधुनिक विश्व के सात अजूबों में पहले स्थान पर है | ताजमहल को यह स्थान विश्वव्यापी मतदान से हासिल हुआ था जहाँ इसे दस करोड़ मत मिले थे | प्रत्येक वर्ष ताजमहल के दीदार के लिए तक़रीबन 30 लाख दर्शक आते हैं जो कि भारत के किसी भी पर्यटन स्थल पर आने वाले दर्शकों की संख्या से अधिक है |
एक तरफ जहाँ यह इमारत समूचे विश्व में अपने आकर्षण की वजह से प्रसिद्ध है वहीं इससे संबंधित अनेक प्रचलित कथाएं भी लोगों की ज़ुबानी सुनने को मिलती हैं | इसी सन्दर्भ में कुछ लोगों का कहना है कि इस भव्य निर्माण से जुड़े लोगों से यह इकरारनामा लिखवा लिया गया था कि वह इस रूप की कोई दूसरी इमारत बनाने में किसी तरह का कोई सहयोग नहीं करेंगे | हालाँकि उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर कहीं से भी इस तथ्य की पुष्टि नहीं होती है |
खैर ये तो सच है कि ताजमहल की खूबसूरती को चंद अलफ़ाज़ या लाइनों में बयान नहीं किया जा सकता पर इतना ज़रूर है कि ताजमहल के बारे में इतना कुछ जानकर आप में से कोई शख्स ताजमहल को देखने की ख्वाहिश अपने दिल में दबाकर नहीं रख सकता | देखिये जनाब बातों ही बातों में ताजमल की एक और विशेषता पता चल गयी कि ताजमहल न केवल अपने देखने वालों को अपनी तरफ आकर्षित करता है बल्कि अपने बारे में पढने वालों के अन्दर भी यह जिज्ञासा और बेचैनी अवश्य पैदा कर देता है कि वो इसके दर्शन के लिए अवश्य जाएँ |


मोहम्मद तारिक़ुज़्ज़मा

जामिया मिल्लिया इस्लामिया नई दिल्ली 

Wednesday, 13 August 2014

ये कैसा भेद

ये कैसा भेद

पूरी दुनिया में आये दिन किसी न किसी व्यक्ति के धर्म परिवर्तन की घटना सामने आती रहती है| भारत भी इससे अछूता नहीं है क्योंकि विश्व के अन्य देशों कि तरह यह भी एक लोकतान्त्रिक देश है| इस देश में जहाँ एक तरफ प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म के अनुसार चलने की इजाज़त है वहीँ दूसरी तरफ इस देश का संविधान किसी व्यक्ति के धर्म परिवर्तन करने पर भी कोई रोक नहीं लगाता लेकिन इसी देश में अपनी आदत से मजबूर एक ऐसा वर्ग भी है जो धर्म परिवर्तन की घटनाओं पर किसी शिकारी की तरह नज़र रखता है और उस पर हंगामा मचाते हुए सांप्रदायिक सौहार्द को अक्सर भंग करने की कोशिश करता रहता है| भारत में धर्म परिवर्तन की घटनाएं कोई नयी बात नहीं हैं और ना ही धर्म परिवर्तन करने वाला प्रत्येक व्यक्ति एक ही धर्म अर्थात इस्लाम धर्म ही स्वीकार करता है| कुछ विशेष जाति के लोगों के ज़रिये बौद्ध और ईसाई धर्म स्वीकार करने के अनेक उदाहरण हमारे सामने मौजूद हैं लेकिन संविधान निर्माता भीम राव अम्बेडकर के ज़रिये 6 लाख दलितों के साथ 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म स्वीकार करने पर इतना हंगामा नहीं होता जितना केरल के मीनाक्षी पुरम में फरवरी 1981 में दलितों के सामूहिक रूप से इस्लाम धर्म स्वीकार करने पर होता है |
इस वर्ग का यह भी मानना है कि एक सोची समझी रणनीति के तहत भारत के सभी हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाने की साज़िश चल रही है| हालिया दिनों की मेरठ की घटना हमारे सामने है जहाँ एक लड़की के “ज़बरदस्ती” इस्लाम धर्म स्वीकार करवाने के मामले को साम्प्रदायिक रंग में रंगने का भरपूर प्रयास किया गया| ये तो प्रशासन और पुलिस विभाग की चौकसी थी जिसके कारण मामला तूल पकड़ने से बच गया वरना हालात इतने खराब हो चुके थे कि कोई अनहोनी हो जाती तो आश्चर्य की बात नहीं थी| गौरतलब बात यह है कि ऐसे मामलों में “ज़बरदस्ती” और “जबरन” को खूब हवा दी जाती है चाहे धर्म परिवर्तन करने वाला व्यक्ति खुद ही चिल्ला-चिल्लाकर अपनी रज़ामंदी ज़ाहिर करे| हक़ीक़त कुछ भी हो मगर जबरन किसी को इस्लाम धर्म स्वीकार करने पर मजबूर करना स्वयं इस्लाम धर्म की शिक्षाओं के खिलाफ़ है|
भारत में तो कई हस्तियाँ अपने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए भी इस्लाम धर्म को स्वीकार करती रही हैं| धर्मेन्द्र का हेमा मालिनी से शादी की ग़र्ज़ से इस्लाम कुबूल करना तथा हरियाणा के चन्द्र मोहन का “चाँद मोहम्मद” और अनुराधा बाली का “फ़िज़ा” होना बहुत अधिक दिनों की बात नहीं है| हैरत तो इस बात पर है कि धर्म परिवर्तन का घोर विरोधी यह वर्ग हिन्दू से मुसलमान होने पर तो ज़बरदस्त मुखालफ़त करता है मगर खुद भी भारतीय मुसलमानों को अपने पूर्वजों की ओर लौटते हुए हिन्दू धर्म में शामिल होने की नसीहत देता रहता है|
धर्मांतरण पर पाबन्दी की मांग करने वाले इस वर्ग को जानना चाहिए कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ हर किसी को अपने अपने धर्म पर चलने कि पूरी आज़ादी है तथा स्वेच्छा से अपने धर्म को परिवर्तित करने का मुकम्मल संवैधानिक अधिकार हासिल है |
मो० तारिकुज्ज़मा
जामिया मिलिया इस्लामिया