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Wednesday, 13 August 2014

ये कैसा भेद

ये कैसा भेद

पूरी दुनिया में आये दिन किसी न किसी व्यक्ति के धर्म परिवर्तन की घटना सामने आती रहती है| भारत भी इससे अछूता नहीं है क्योंकि विश्व के अन्य देशों कि तरह यह भी एक लोकतान्त्रिक देश है| इस देश में जहाँ एक तरफ प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म के अनुसार चलने की इजाज़त है वहीँ दूसरी तरफ इस देश का संविधान किसी व्यक्ति के धर्म परिवर्तन करने पर भी कोई रोक नहीं लगाता लेकिन इसी देश में अपनी आदत से मजबूर एक ऐसा वर्ग भी है जो धर्म परिवर्तन की घटनाओं पर किसी शिकारी की तरह नज़र रखता है और उस पर हंगामा मचाते हुए सांप्रदायिक सौहार्द को अक्सर भंग करने की कोशिश करता रहता है| भारत में धर्म परिवर्तन की घटनाएं कोई नयी बात नहीं हैं और ना ही धर्म परिवर्तन करने वाला प्रत्येक व्यक्ति एक ही धर्म अर्थात इस्लाम धर्म ही स्वीकार करता है| कुछ विशेष जाति के लोगों के ज़रिये बौद्ध और ईसाई धर्म स्वीकार करने के अनेक उदाहरण हमारे सामने मौजूद हैं लेकिन संविधान निर्माता भीम राव अम्बेडकर के ज़रिये 6 लाख दलितों के साथ 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म स्वीकार करने पर इतना हंगामा नहीं होता जितना केरल के मीनाक्षी पुरम में फरवरी 1981 में दलितों के सामूहिक रूप से इस्लाम धर्म स्वीकार करने पर होता है |
इस वर्ग का यह भी मानना है कि एक सोची समझी रणनीति के तहत भारत के सभी हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाने की साज़िश चल रही है| हालिया दिनों की मेरठ की घटना हमारे सामने है जहाँ एक लड़की के “ज़बरदस्ती” इस्लाम धर्म स्वीकार करवाने के मामले को साम्प्रदायिक रंग में रंगने का भरपूर प्रयास किया गया| ये तो प्रशासन और पुलिस विभाग की चौकसी थी जिसके कारण मामला तूल पकड़ने से बच गया वरना हालात इतने खराब हो चुके थे कि कोई अनहोनी हो जाती तो आश्चर्य की बात नहीं थी| गौरतलब बात यह है कि ऐसे मामलों में “ज़बरदस्ती” और “जबरन” को खूब हवा दी जाती है चाहे धर्म परिवर्तन करने वाला व्यक्ति खुद ही चिल्ला-चिल्लाकर अपनी रज़ामंदी ज़ाहिर करे| हक़ीक़त कुछ भी हो मगर जबरन किसी को इस्लाम धर्म स्वीकार करने पर मजबूर करना स्वयं इस्लाम धर्म की शिक्षाओं के खिलाफ़ है|
भारत में तो कई हस्तियाँ अपने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए भी इस्लाम धर्म को स्वीकार करती रही हैं| धर्मेन्द्र का हेमा मालिनी से शादी की ग़र्ज़ से इस्लाम कुबूल करना तथा हरियाणा के चन्द्र मोहन का “चाँद मोहम्मद” और अनुराधा बाली का “फ़िज़ा” होना बहुत अधिक दिनों की बात नहीं है| हैरत तो इस बात पर है कि धर्म परिवर्तन का घोर विरोधी यह वर्ग हिन्दू से मुसलमान होने पर तो ज़बरदस्त मुखालफ़त करता है मगर खुद भी भारतीय मुसलमानों को अपने पूर्वजों की ओर लौटते हुए हिन्दू धर्म में शामिल होने की नसीहत देता रहता है|
धर्मांतरण पर पाबन्दी की मांग करने वाले इस वर्ग को जानना चाहिए कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ हर किसी को अपने अपने धर्म पर चलने कि पूरी आज़ादी है तथा स्वेच्छा से अपने धर्म को परिवर्तित करने का मुकम्मल संवैधानिक अधिकार हासिल है |
मो० तारिकुज्ज़मा
जामिया मिलिया इस्लामिया

1 comment:

  1. आज जनसत्ता में प्रकाशित होने पर हार्दिक बधाई !!

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